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बुधवार, 12 अगस्त 2015

कविता-२३० : "यादों का तकिया..."

 तकिया...
आराम देता देह को
विश्राम अवस्था में
अंदर भरी हुई नर्म रुई कपास
की कोमलता
सुर्ख त्वचा को देता
सुखद अहसास....
पर कुछ दिनों से , सच__
तुम्हारे विरह की पीड़ादायक
यादे घूमती रहती
दिलो दिमाग में
त्वचा के रोम छिद्रो से
निष्काषित होती
हुई
निश्चित ही विश्राम के
आराम को
कोहराम में बदलती है
नर्म मुलायम
तकिया भी
दर्द के आंसुओ से भीगकर
पत्थर सा कठोर
यादो का तकिया
बनकर
मस्तिष्क के नीचे होकर
भी
मष्तिष्क के ऊपर के
वेग को
बढ़ा देता
फिर ये देह कहाँ सो पाती
सोकर भी...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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