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गुरुवार, 27 अगस्त 2015

कविता-२४५ : "अनमोल रिश्ता..."


कूड़े घर में आई एक आवाज
कोई दरिंदा फेंक
गया अपनी ही संतान
सिर्फ इसलिए उस नवजात
की नन्ही देह में
वो अंग नहीं था, जिस पर घमंड
करता है पुरुष...
कुछ तो जन्म पूर्व ही उनके
आँखों के नजारा छीन लेते है
कोख में ही हत्या
उफ्फ्फ.... बेहद अमानवीय
साँसों का उन साँसों से
अनमोल रिश्ता था
पर....
बे मोल कर दिया
किसलिए आखिर...???

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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