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शनिवार, 1 अगस्त 2015

कविता-२२० : "सावन चौखट पर..."

रिमझिम बारिश
खिली बहारें
उमंग भरी रेत की
सिलवट पर
सावन चौखट  पर
साज सजे कितने झूले
खेल खिलोने
रमतूले
मौसम की देखो अंगड़ाई
धरती के ही पट पर
सावन चौखट पर
गुड़िया रानी है मुस्काई
बड़ी बुआ मीठा लाई
लट्टू डोरी
और चपेटा....
मेला लगते
नदिया के तट पर
सावन चौखट पर
पीले धागे की महक है आई
राखी को
ज्यों बहिन सजाई
हल्दी रोरी चावल लगा के
बहिना
रोब जमाये डट कर
सावन चौखट पर
रिश्तों की मिठास बिखरे
बाजार सजे
मनहारी फेरे....
माँ के हांथ की मीठी
खुरमी
हमने खाई गट गट कर
सावन चौखट पर…!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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