Powered By Blogger

बुधवार, 22 जुलाई 2015

कविता-२१० : "मिट्टी... तेरी... मेरी..."

मेरी देह की मिट्टी
तेरे देह की मिट्टी सी है
फर्क
सिर्फ इतना है कि
तुमने उगाये
दुराचार अनैतिकता और
तमाम बुराइयो के शूल
मेरी मिट्टी की तासीर
अलग है तुमसे
जिसने उगाये हमेशा
सदाचार आचरण और नैतिकता
के फूल

अब बताओ ??

किसकी मिट्टी अच्छी
और किसकी फिजूल...!!!
--------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें