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बुधवार, 15 जुलाई 2015

कविता-२०३ : "माँ..."

काश, लिख पाता तुम पर
तो शब्द शब्द
महका देता तुम्हारे चरणों में ही
पर चाह कर भी
लिख नहीं पाता
बंध जाता हूँ  ___________

तुम अखिल ब्रह्मण्ड की जनेता
तुम सृष्टि निर्माता
तुम विश्व पूज्य
तुम ममता का अथाह सागर
तुम ज्ञान की प्रथम पाठशाला
तुम त्याग की देवी
तुम नेह का भंडार
तुम अपनत्तव की खान
तुम दिनकर सी तेज
तुम निशा सी शीतल
तुम सागर सी विशाल
तुम धरती सी सहनशील
तुम ____________

और भी कुछ
बहुत कुछ
सब कुछ

जो बंधा हूँ
या असक्षम कहने में

फिर कैसे लिख पाउ तुझ पर
हाँ तुम पर.....

क्योकि
तुमने ही तो लिखी है
मेरे अस्तित्त्व की कहानी
सचमाँ...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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