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सोमवार, 8 जून 2015

कविता-१६७ : "मेरे अहसास बहरे..."


तेरे ह्रदय की पीर
गर सुन पाता
तो पीर फिर
कहाँ रह जाती...

नहीं सुन पाता हूँ
शव्द पीड़ा के
क्योकि...

तुम्हारी मुहब्बत
है गूंगी
और मेरे अहसास
शायद बहरे...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________


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