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सोमवार, 25 मई 2015

कविता-१५३ : "आओ न..."

सुनो...

आ जाओ अब करीब मेरे
जल्दी ही...

कानो में घोल दो अपनी
आवाज का संगीत मीठा
और छूकर एक बार
दे दो वो अहसास
जिसे पाकर ही हुआ था मै
तुम्हारा.... 
सिर्फ तुम्हारा ही...

ये राते ये दिन ये समय 
पलक पांवड़े बिछाए
प्रतीक्षारत है 
आज भी....

आ जाओ अब ..
ये बेचेनियाँ , उदासिया
तनहाइयाँ
बदले बेबफाई में.
पहले इसके दिखा जाओ
वफा अपनी...

और आओगे भी न क्यों
आखिर कब तक ???

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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