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गुरुवार, 21 मई 2015

कविता-१४९ : "क्या बात हैं..."


मेरी हर बात पर
छोटी सी मुस्कराहट तुम्हारी
सच बहुत प्यारी
और गालो के बीच में
वो छुटकू सा डिंपल
अहा
क्या बात है.....

अचानक से आना तुम्हारा
गेसुओं का लहराना तुम्हारा
और इतने में
हवाओ का महक जाना
वाह्ह्ह्ह्
क्या बात है.....

आकर मुझे छूना
पलट कर शरमाना
फिर लौट कर न आना
सच ये इतराना
क्या बात है...............

तुम पर लिखना मेरा
चुपके से तेरा पढ़ना
पर कभी लाइक
कमेंट न करना
ओहो...
क्या बात है.....!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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