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मंगलवार, 19 मई 2015

कविता : १४७ : 'गलतफहमी'

जिस दिन चला जाऊंगा मैं......

तुम्हारे आँख में आंसू न ठहर पायेगे
मेरा  चेहरा याद कर..
मेरी कई रातो से उनींदी आँखे
में गहरे इंतजार की सुर्ख
लाल पपड़ी
तुम्हारे पाँव के आसपास की जमी को
नर्म कर देगी
तुम्हारे ही अश्रुओं से
यकीनन......

तुम लिखोगे कई कविता मेरे
मिलने के बाद
फाड़ने के लिए ही
पर कविताओ से लिखे टुकड़े
कागज के
जमी पर न गिरेंगे ऊपर से नीचे
बल्कि वो ऊपर उठकर
तुम्हारे ह्रदय में प्रेम से एक
राग सा सुनाएंगे
पर फिर ह्रदय का प्रेम
शायद.....

नहीं कहूँगा अब 
तुम हर पल भागोगे
खिड़की पर
देखोगे आसमान  पेड पौधे
और पंछी....

खोये से रिश्तों की धरा पर
हर आहट लगेगी मेरी सी ही
और तुम्हारी आँखों
में लहरे उठेंगी फिर
मिलन की.....

पर कहाँ होगा शेष यह
क्योकि
जाग्रत हुए प्रेम को
वक्त की आंधी पीछे धकेल
चुकी होगी
और  तुम्हारा प्रेम
तब्दील हो जायेगा
स्मृतियो में ....!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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