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सोमवार, 6 अप्रैल 2015

कविता-१०४ : "जिंदगी का दर्द..."


जिंदगी दर्द है
या
दर्द जिंदगी...

ये तो नहीं पता मुझे
और न चाहता हूँ
पता करना, क्योकि...

जिन्दगी में दर्द हो या
दर्द में जिन्दगी जो
दर्द तो है ही...

और जब दर्द है तो
फिर जिन्दगी...
जिन्दगी कहाँ बचती
लेखनी बन जाती है
मेरी...

जो लिखती है
ज़िन्दगी का दर्द
और दर्द में जिन्दगी ही
शायद...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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