शनिवार, 4 अप्रैल 2015

कविता-१०२ : "बलात्कार..."

बलात्कार.....
हर दिन ..हर पल...हर छण..
कहीं न कहीं...
इधर....उधर...और जाने किधर
प्रतिस्पर्धा सी हो गई अब तो
कौन कितना दर्द देगा...

और निर्णय आएगा...
अख़बार इन्टरनेट पर
पत्र पत्रिकाये में
और फिर कुछ लोग तो है ही
पीडिता का फिर से करने
बलात्कार...

उतार देंगे शब्दों में उसकी कहानी
लगा देंगे नीचे उसकी शोषित नग्न देह
की तस्वीर...

मिलेंगे ढेरो लाइक और कमेंट
फिर दब जाएगी ये पोस्ट 
कुछ दिनों बाद
हो जायेगा विषय पुराना...

पर ये दर्द पीड़ा और वेदना
और बढती जाएगी...

समय के साथ साथ
बलात्कार के बाद भी
बलात्कार...

एक और बलात्कार
फिर एक और बलात्कार
फिर हर और हर छोर
बलात्कार...

सिर्फ उसकी देह का नहीं
नारी का नारी के मन का
और उसकी आत्मा का...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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