Powered By Blogger

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

कविता-१२७ : "सांझ क्यों हो गई ?"



अरुणोदय हुआ.....

रागिनी रौशनी छा गई
पर !
अचानक
तुम रूठ गये...
सपने टूट गये..


ख्वाहिशे बिखर गई..
बिछड़ ही गये आखिर...

ओह !
सांझ क्यों हो गई ?
-----------------------------------------------------------

_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें