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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कविता-१२६ : "नाजुक सी हथेलियों ने..."


उस रात मेरी सुर्ख लाल आँखों से

गिरते हुए अश्रुओ को

थामा था जिन नाजुक सी हथेलियों ने

वो तुम ही थे....

मेरी गूंगे मौन के दिये थे जब
साहस के स्वर
वो भी तुम ही थे...

मेरी अधखुली आँखों में पल रहे
सपनो को
हकीकत में बदलने वाले
सिर्फ तुम्ही थे...

मेरी उदगारो की नीले स्याह को
कागज पर सवारने वाले
तुम ही थे...

मेरे हर कठिन मोड़ पर
संघर्षो के उफ्नाव पर 
सहारा देने तुम हां
सिर्फ तुम ही थे...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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