Powered By Blogger

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

कविता-७३ : "दिल में होली जल रही हैं...!!!"

स्वप्न से लगते हो तुम अब
प्रार्थनाए क्यों मौन है
उम्मीद की ,उम्मीद कहाँ है
साथ अब भी कौन है
सांस क्यों मचल रही है
दिल में होली जल रही है...
मत पढ़ो अब गीत मेरे
जिंदगी के सुर जान लो
न रहा हूँ तुम्हारा
किन्तु ये भी मान लो
थमता नहीं ये प्रेम सागर
उम्मीद अब भी पल रही है
दिल में होली जल रही है...

चाँद सा है रूप तेरा
मुस्कान फूलो सी तुम्हारी
तुम जो गर साथ दे दे
महक जाये बगिया हमारी
रात की एक आस में
साँझ भी तो ढल रही है
दिल में होली जल रही है...!!!”
------------------------------------------------------------

_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें