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मंगलवार, 31 मार्च 2015

कविता-९८ : "काश मिलता होता..."

काश मिलता होता

किसी दुकान पर....
तो होता कितना अच्छा ....

रोज रोज की
ये भीख सी आदत मांगने की..


और...  रोज रोज का

भाव खाना/ मना करना
खत्म कर देता..

खाली हाँथ जाता दुकान पर

और
लाता झोली में स्नेह प्यार ढेर सारा...

कितना अच्छा होता
है न...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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