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बुधवार, 25 मार्च 2015

कविता-९२ : "तुम पुरुष हो...!!!"


तुम पुरुष हो
और कुछ पुरषो के अन्दर
एक कापुरुष
जिसके अन्दर अहं
अभिमान और अश्लीलता
भरी है कूट कूट कर...

स्त्री का सम्मान सिर्फ माँ और बहिन
और पत्नि
के रिश्तो में ही शायद
और बाकि स्त्री
तुमसे सदैब ही असुरक्षित
क्योकि
तुम कापुरुष हो...

जिसके अन्दर का मिथ्या अहं
देता है पीड़ा स्त्री को
सदैव ही...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________



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