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सोमवार, 23 मार्च 2015

कविता-९० : "सोच..."

कितनी आसानी से कह दिया
तुमने !
व्यर्थ बर्बाद करते हो तुम
समय अपना...
कागज कलम और शब्दों के संग
सब फालतू बर्बादी है ये...
हाँ...
शायद सही कह रहे हो तुम...
.
.
पर गलत भी, नहीं हूँ मै....
ये है फासला
सिर्फ सोच का....
क्योकि...
सोच ही तो प्रथक करती है
इन्सान को
दूसरे इन्सान से...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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