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शनिवार, 21 मार्च 2015

कविता-८८ : "प्रेम की ही तरह..."

जाने ऐसा क्या है
तुम्हारे व्यवहार और नेह में
जो खींचता है मुझे
हर पल चुम्बक की तरह...

सच तो यही है के ये प्यार ही है
वो भी एकदम सच्चा वाला
लेकिन
तुम्हारा वही एक प्रश्न,
क्या तुम भी करते हो मुझे प्यार
और मेरा उत्तर,
हर बार की तरह निरुत्तर ,
और शायद रहेगा भी...

क्यूंकि ये प्रेम है
और प्रेम
शब्दों से बयां नहीं होता ना
मेरा प्रेम भी निश्छल है
तुम्हारे प्रेम की ही तरह...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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