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शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

कविता-४३ : "दर्दानुभुती"


कलम
कागज
और
............में

तीनो ही
.........अधुरे है

एक दुसरे
.............के बिना

तीनो मिल
जाते
है.....
और
एक हो

जाते है...!!!

आज
लिखना
चाह
रहा था
बहुत कुछ
पर...,
.
.
.
.
.
.
.
.
कलम
की
स्याही
ही

खत्म...!!!
हम आते
है...
और !
हम चले जाते
है...

पर !

जाने वाले...
वापिस आते
है...
और...
बहुत याद आते
है...!!!
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________ आपका अपना : 'अखिल जैन'_______

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