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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

कविता-४२ : "काम के पुजारी..."

सोच रहा हूँ
जाते जाते
फेस बुक बंद करते करते
कोई कविता या लेख संधारित किया जाये
प्रतिरोज की तरह...
पर !
आज ये दिल कुछ कहने ही तैयार नहीं..
लेखनी भी उदास उदास सी है है...

दरअसल
हम जो देखते है , सो लिखते है
सोचते है तो कहते है
देखा और सुना होगा बुरा ही
अनैतिक, अधर्म, या दुराचार
तभी वेदना और पीड़ा है आज...
ओह!

क्या चल रहा है समाचार में!
नैतिकता, संस्कृति, सभ्यता, धर्म
कहाँ चला गया भगवानो के देश से..
श्री कृष्ण की जन्म भूमि
राम की पावन धरा....
महावीर के संदेशों के भारत....
ऋषि मुनियों एवं हजारो हजारो
त्यागी तपस्वी संतो आदर्श पुरषो
के त्याग तपस्या की सिंचित पावन धरा
और!

कैसा ये काम ..
संत आशाराम
संत....नहीं नहीं अंत
आशा नहीं नहीं तमाशा...
राम नहीं बिल्कुल नहीं..
राम के पर्याय तो हो ही नहीं
राम के नाम के अधिकारी भी नहीं...
वो मर्यादा पुरषोत्तम थे
और तुम...
असंत तमाशाराम
मर्यादा उल्लंघन कारी....

तुम राम के नहीं
काम के पुजारी हो
संतत्व तुम्हारा
बदबू दे रहा है
अधर्म दुराचार के गंदे पानी ने
तुम्हारा केशरिया चोला
पापो से गन्दा कर दिया है...
बालिका कन्या देवी रूप होती है
माँ दुर्गा का शाप है तुम्हे
आशाराम बापू

अधर्म एक दिन ,..
जब छलकने लगता है
तब कंस और रावण भी
उसका द्वारा ही खत्म किये जाते है
अब भर चूका है पाप का घड़ा
मैली हो गई तुम्हारी चादर ओर चटाई

भक्तो का तांडव देखो
और कानून का फैसला
श्री कृष्ण की जन्म स्थली में
पहुँच गए हो
उपासना करो
मुरली मनोहर श्री गोपाल
आये और बचाले तुम्हारी
लाज... द्रोपती की तरह....
पर
इस बार लाज बचाई नहीं
लाज उतरेगी तुम्हारे संतत्व की...
आशाराम तुम अब राम के नहीं

काम के कहलाओगे पुजारी....।।
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________ आपका अपना : 'अखिल जैन'_______

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