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शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

कविता-६७ : "मेरे जख्म..मेरा दर्द..."


बहुत दिनों बाद ही सही
र लिख तो रहा हूँ मै...
एक कविता.....
जिसे मै अहसास कहता हूँ..
अब तुम्हे पसंद न आये
तो कर भी क्या सकता हूँ...

जब...
शांत था तो बार बार कहते थे..
लिखो..लिखो....लिखो...
कोशिश करते थे, तुम बार बार
मेरे जख्मो को फिर से कुरेदने की...

अब लिख ही दिया मैंने आज
फिर से...रोकने पर..टोंकने पर..
पढ़कर...ये न कहना ..
कि कब ??
कुरेदा तुम्हारे जख्मो को...

कैसे बताऊ तुम्हे??
मेरे जख्म..मेरा दर्द...
ही कविता है मेरी...!!!
सच !


बिलकुल तुम्हारी तरह...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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