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रविवार, 22 फ़रवरी 2015

कविता-६१ : "नन्ही बूंद बारिश की..."

समुन्दर ने कहा...
बारिश की एक बूँद से...

तुम्हारा वजूद ही क्या ?
मेरे सामने...
सुनकर , हंसकर बोली
नन्ही बूँद बारिश की......

रुको !
बरसती हूँ बारिश संग
और गिरकर तुझमे..
सागर ही हो जाउंगी ...

और फिर यही बात जो तुमने
मुझसे कही..
मै भी कहूँगी किसी दूसरी
बारिश की बूँद से...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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