Powered By Blogger

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

कविता-५४ : "तिरंगा..."

तिरंगा...,
चंद मीटर टुकड़ा कपडे का
तीन रंग एक चक्र...

कहने को तो महज कपडा ही
पर !
समाया पूरा देश, हिंदुस्तान

सारे मजहब भाषाये और
हर इन्सान
शान से मान से और
पूरे अभिमान से...

सांस लेता है हो सुरक्षित
इस लहलहाते तिरंगे की
आड़ में ही...!!!
-------------------------------------------------------------

_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें