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बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

कविता-४७ : "ऐसे ही होते रहेंगे मतदान..."

आज सुबह
से शाम
तक...

अलग अलग
जगहों
पर...

पर्दों के पीछे
इलेक्ट्रानिक
मशीन पर...

अठारह साल
से ऊपर
का हर
आदमी...

दवायेगा
किसी की
किश्मत
का निशान...

आयेगी एक
आवाज
टें टें..
और ये
टें टें
की आवाजे...

एकत्रित हो
जायेगी
प्रत्याशियों के
किस्मत के
खाते में...

हाँथ की
एक उंगली
में नीली स्याही
का गाढ़ा
निशान...
लेकर
लौट जायेगे
हम...

पर
इन एकत्रित
हुई
आवाजो...
की
बहुमत्ता
ही...
शोरगुल में
तब्दील
हो जायेगी
किसी एक
प्रत्याशी की...

और वो
बैठ जायेगा
कुर्सी पर
अगले पांच
वर्षो के लिये..

फिर...
वैठा ही रहेगा
खड़ा नहीं होगा
तुम्हारे

लिये...!!!

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