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बुधवार, 7 जनवरी 2015

कविता-०७ : 'अगर तुम चाहो तो'

अगर तुम चाहो तो...,
देखती हो जिस चाँद को
टकटकी लगाकर
उसे ले आऊं पकड़कर
रख लेना हमेशा के लिये
रोज के रोज लगातार ऊपर देखने से
गर्दन नहीं दुखेगी तुम्हारी

अगर तुम चाहो तो...,
आकाश से उन सारे झिलमिलाते
सितारे भी नोंच लूं
सजा लेना अपनी गुलाबी चुनरी में
लगोगी परी की तरह

अगर तुम चाहो तो...,
दुनिया के सारे मदमस्त प्रसूनो की
खुशबू को भर दू तुम्हारे गेसुओ में
जुल्फों के लहराने पर तुम्हारी
ही खुशबु होगी चारो और

अगर तुम चाहो तो...,
कहो वो सब कर दू जो
चाहती हो तुम ख्वाबो में
एक बार कहो न
रोज रोज छिप छिप कर बाते करना
मिलना... ठीक सा नहीं
जन्मो जन्मो के लिए सिर्फ
तुम्हारा ही हो जाऊ...
अगर तुम चाहो तो...!!!
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................आपका अपना..... 'अखिल जैन'

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