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रविवार, 25 जनवरी 2015

कविता-२८ : "जिंदगी का कारवां"


साँसों के प्रवाह संग
चलना / चलाना/ चले जाना
और मुस्कराना
कभी टूट के बिखर बीजाना...

यथार्थ का स्मृतियों में तो
स्मृतियों का फिर से हकीकत में
बदल जाना...

कभी जन्म की ख़ुशी तो
कभी मरण का मातम
भोर का आना निशा का जाना
समय के चक्र में
तुम्हारा आना और फिर
चले जाना...

कारवां ही है जिन्दगी का
जिन्दगी के जैसा ही !
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________ आपका अपना 'अखिल जैन'_______

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