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बुधवार, 21 जनवरी 2015

कविता-२४ : "दो कदम... साथ चलो..."

गिरेगी बूँद पसीने की
हो सकता है
पर भरी धूप में मेरे हाँथो का अहसास
शीतलता ही देगा
तुम मेरे साथ मिलकर चलो तो सही

भोर होगी , जरूर होगी
न भी हो
कहने पर तुम्हारे
मान लेता हूँ
पर, मेरे साथ तुमको
दिखाई न देगा निशा का छोर
तुम मेरे साथ मिलकर चलो तो सही

आ भी जाओ अब
मेरी ह्रदय की धड़कन में
हो सकता है न धड़के कभी ये
मांस का एक टुकड़ा


पर रहोगे मेरे साथ ही
सच
तुम मेरे साथ मिलकर चलो तो सही

लिखता हूँ मैं
जैसे सदियो से लिखता ही आ रहा
ज़माने की बातो पर
पर तुम आ जाओ स्याह में
फिर शब्दों से भी लिखेगा
तुम्हारा नाम ही
नहीं है न भरोसा
तुम मेरे साथ मिलकर चलो तो सही

जान जाओगो
खुद ही...!!!
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_________आपका अपना____'अखिल जैन'________

1 टिप्पणी:

  1. तुम्हारी ये सरलता भाती है सबको...
    अपनी सरलता को न त्यागना कभी...
    देखना कारवाँ बन जायेगा...

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