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शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

कविता-३४ "रिश्तों की खातिर..."


सहता रहा जिन्दगी भर
कभी दुखी मन से
तो कभी हँस कर...

अफ़सोस न रहा जरा
सा भी
ख़ुशी पाई तो बस चुल्लू भर
तुम्हारी मुस्कराहट ही सब
कुछ मेरा
जो मेरा वो सब तेरा....

हँसता रहा रोकर भी
और रोता रहा खोकर भी....

चलता ही रहा शूलो में
रिश्तो भरे उसूलो में
तुम चुप तो मै चुप
तुमसे ही रहा
तुमसा ही कहा

हरदम
हरपल
हर क्षण ही
क्योकि......अनमोल
जिंदगी का जिन्दगी से ही
ये साथ छूट न जाये...
रिश्तो की डोर टूट न जाये...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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