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मंगलवार, 20 जनवरी 2015

कविता-२२ : "तुम आये... नूर आया..."


मैंने लिखा तुम्हारा नाम
अँधेरे में
और जला दिया एक चिराग
नाम के ऊपर
ताकि, तुम्हारा नाम
न हो जाये अँधेरे में, अँधेरे जैसा

फिर मैंने बनाया तुम्हारा एक चित्र
अंधेरे में ही
और जला दिया चिराग
चित्र के ऊपर भी
ताकि, चित्र न हो जाये
अँधेरे में, अँधेरे जैसा ही

अबकि लिखा मैंने तुम पर एक गीत
अँधेरे में ही
फिर से जला दिया एक चिराग
ताकि गीत भी न हो जाये
अँधेरे में,अँधेरे जैसा ही...

और इतने में आ गए तुम
उस अँधेरे में
फिर क्या...........

उफ्फ्फ.....ये क्या हुआ
चिराग बुझ गया ।
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_______आपका अपना___ ‘अखिल जैन’

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