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सोमवार, 19 जनवरी 2015

कविता-१९ : 'सिर्फ... एक बार'

देना पुकार...
सिर्फ एक बार
होंगे जहाँ हम
हम दौड़े... चले आयेगे.....

धूप जैसा कुछ लगे
छाव की तलाश हो
कंठ सूखता सा लगे
जोर की प्यास हो
देना पुकार....
सिर्फ एक बार
होंगे जहाँ हम
हम दौड़े... चले आयेगे.....

जब कही संग्राम हो
राह में विराम हो
दुःख हो पीड़ा हो
संकटो की क्रीडा हो...
देना पुकार...सिर्फ एक बार
जहाँ भी होंगे हम
हम दौड़े... चले आयेगे.....

जब खुशियाँ न पास आये
जब जहाँ में कोई गम सताये
आंसू की सरिता बहे
कोई साथ न रहे
देना पुकार...सिर्फ एक बार
जहाँ भी होंगे
हम दौड़े... चले आयेगे.....

मुहब्बत किसी की कम सी लगे
सुर्ख संबंधो की धरा नम सी लगे
अपने भी तुमको रुलाने लगे
मायूसी के बादल छाने लगे
देना पुकार.....सिर्फ एक बार
जहाँ भी होंगे
हम दौड़े... चले आयेगे.....
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_______आपका अपना___’अखिल जैन’_____

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