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शनिवार, 17 जनवरी 2015

कविता-१७ : 'अपनी तलाश'

अपनी तलाश में ही गुजार दिए
अपने ही सारे दिन सारी राते
और सारे पहर
चलते चलते पगडंडियो से
कटीले जीवन में
यहाँ वहां हर और
हर छोर....

भटकता रहा , चलता रहा
सांसारिक रिश्तो में गुथा
तो कभी समाज की मर्यादाओ में
खुशियों के सागर मिला
तो कभी भीष्ण धूप गमो की
अपनों ने धोखा दिया
तो गैरो ने साथ
जिन्दगी सा हो गया मै
जिन्दगी की दौड़ में...

क्षितिज से धरा की गहराई तक
जा पहुंचा पर
वो नहीं मिला जो मिलना था
सच ! गुजार दी जिन्दगी सारी
चलते चलते
अपनी तलाश में...!!!
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________आपका अपना___अखिल जैन’_________

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