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मंगलवार, 13 जनवरी 2015

कविता---१३ : 'तुमने क्या सोचा था???'

तुमने क्यों सोचा था...........

शहर के बीच चौराहे पर
सड़क पार करते वक्त थाम लेती थी
तुम हाँथ मेरा...

कस कर पकड़ लेता था मै
कि जरा भी अंतर न हो दोनों की
उँगलियों के बीच

मेरी घूरती आँखों से तुम कहती थी
अच्छे से पकड़ लो क्योकि
शायद छूट जायेगा जल्दी ही ये हाँथ
हमेशा के लिये.....
तुमने क्यों सोचा था............

मेरे जन्मदिन पर तुमने अपने हाँथ से
बनाकर केक खिलाया था
बड़े प्यार से क्रीम को छपाकर मेरे
मुँह में.....

कहा था तुमने खा लो प्यार से
अंतिम बार ही है शायद ये....
तुमने क्यों सोचा था .......

उस हरे हरे बगीचे में
बूढ़े बरगद के नीचे तुमने
लिटा लिया था सिर मेरा
अपनी कोमल गोद में..

फिर अपनी उंगलियों से मेरे
खामोश लवो पर लिखा था नाम
शायद मेरा क्योकि
मै तो अचेत सा ही था उस वक्त

कहा था तुमने
सहेज कर रखना ये अहसास
क्योकि अंतिम ही है शायद
ये मधुर मिलाप ....
तुमने क्यों सोचा था.........

सच !
न सोचा होता तुमने वो
न कहा होता तुमने वो
तो शायद मेरी यादो में न होते तुम
मेरी कविताओ में न होते तुम..

होते संग मेरे , मेरे अंतस के साथ
बगल में भी , जहाँ बैठकर अभी
लिख रहे होते साथ साथ
कविता ...
मेरी और तुम्हारी......

पर....
नहीं पता ..

तुमने क्यों सोचा था ......??
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...............आपका अपना.... 'अखिल जैन'

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