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शनिवार, 10 जनवरी 2015

कविता-१० : 'अमिट प्रेम'

शहर से दूर बना
वो छोटा तालाब
जहाँ घंटो एक दुसरे का हाँथ थामे
हम बात करते थे....

वो तालाब अब सूख गया है...
याद है तुम्हे ??

वो वीरान खंडहर महल
जहाँ अक्सर जाते थे हम
घूमने, तुम्हारे रूठने पर
ले जाता था मै...

वो खंडहर महल भी ढह गया..
याद है तुम्हें ??
वो कच्चे पगडंडी वाला
काली मिटटी वाला खेत
उसकी ऊँची ऊँची फसले
जहाँ बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे
खाते थे खाना जो बनाकर
लाती थी तुम अपने हांथो से...

वो खेत वो बरगद अब कुछ नहीं शेष
पर...!

उस पुराने मंदिर की बड़ी सी चट्टान पर
तुमने लिखा था ...
हम दोनों का नाम...

आज भी वैसा ही , लिखा हुआ है
मेरे दिल पर तुम्हारे नाम की तरह...

वो बड़ी सी चट्टान ...
वो खुरेद कर लिखे नाम....

याद है तुम्हे...??
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.........आपका आपना... 'अखिल जैन'

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